1980 के दशक की बात है। चीन के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले लियांग शी ने किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से पढ़कर नाम और पैसे कमाने का सपना देखा।
1983 में 16 साल की उम्र में वह पहली बार यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम में बैठे। सफल नहीं हुए तो एक-दो कोशिशें और कीं। हर बार नाकामी हाथ लगी। फिर मजबूरी में उन्होंने पार्ट टाइम काम करना शुरू किया। बाकी वक्त एंट्रेंस की तैयारी करते। लेकिन 9 साल तक रेगुलर परीक्षा देने के बाद भी वह किसी नामी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले पाने में नाकाम रहे। इसी साल एज लिमिट पार होने की वजह से वह फिर इस परीक्षा में नहीं बैठ पाए।
इसके बाद उन्होंने अलग-अलग व्यापार और नौकरियां की। खुद को एक बड़े बिजनेसमैन के रूप में स्थापित किया। करोड़ों रुपए कमाए। लेकिन उसके मन में एंट्रेंस एग्जाम को पास कर किसी प्रतिष्ठित यूनिवसिर्टी में पढ़ने का सपना जिंदा रहा।
साल 2001 में चीनी सरकार ने कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम से उम्र सीमा को खत्म कर दिया; जिसके बाद उन्होंने फिर से एंट्रेंस देना शुरू किया। इस साल 56 की उम्र में उन्होंने 27वीं बार यह एंट्रेंस एग्जाम दिया।
1.3 करोड़ स्टूडेंट्स के बीच कड़े कॉम्पिटिशन के बीच उन्हें 750 में से 424 अंक मिले। वह इस बार भी किसी नामी यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने से चूक गए। अब उनका कहना है कि वह अगली बार परीक्षा के लिए फिर तैयारी करेंगे।
क्या है चीन का ‘गाओकाओ’, जिसे कहते हैं दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा
चीनी भाषा में ‘गाओकाओ’ का मतलब होता है- उच्च शिक्षा के लिए परीक्षा। हर साल एक से डेढ़ करोड़ चीनी छात्र इस परीक्षा में बैठते हैं। यह दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। 10 में से 9 स्टूडेंट इस परीक्षा में सफल नहीं हो पाते।
यह परीक्षा किसी भी चीनी स्टूडेंट के लिए जिंदगी-मौत का सवाल होती है। इसी परीक्षा पर उसके आगे का भविष्य निर्भर करता है।
यह परीक्षा 4 दिनों तक 8 से 10 घंटे चलती है।
इस दौरान चीन में कंस्ट्रक्शन वर्क से लेकर ट्रैफिक तक रोक दिया जाता है। परीक्षा से कुछ दिन पहले स्टूडेंट जोश बढ़ाने से लिए घरवालों के साथ ‘युद्धगीत’ गाते हैं। मानो, वे किसी जंग पर जा रहे हों।
2016 में लागू चीनी कानून के मुताबिक परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर स्टूडेंट के साथ उसके मां-बाप को भी जेल हो सकती है। इस परीक्षा की निगरानी ड्रोन कैमरे से होती है।
इस परीक्षा को पास करने के लिए स्टूडेंट 12 से 13 घंटे रोज पढ़ाई करते हैं। इसी एग्जाम के इर्द-गिर्द घूमने वाला चीनी प्राइवेट स्कूलों का कारोबार लगभग 8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
दूसरी ओर, इस एंट्रेंस को पार कर टॉप कॉलेजों में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की दर 0.2% से भी कम होती है।