नई दिल्ली:मैं कुश्ती में 3 नेशनल मेडल जीत चुकी हूं। एक दिन पापा ने कहा, अब कुश्ती मत खेलो। आस-पड़ोस के लोग भी मेरे कुश्ती खेलने पर बातें बनाने लगे। फेडरेशन में जो हुआ उसके बाद मुझे लगा मेरा करियर खत्म हो गया।’ नेशनल मेडलिस्ट मान्या ठाकुर जब ये कहानी सुनाती हैं तो उनकी आवाज बार-बार कांपती है।
एक कहानी और है, ‘कुश्ती सीख रही लड़कियों के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, कुछ के पेरेंट्स नौकरी करते हैं। जो सब हुआ उसके बाद उन्हें समझाना मुश्किल हो रहा है। अब तो मैं भी लड़कियों को दांव बताने से बचता हूं। मन में डर लगा रहता है कि बाद में कहीं किसी लड़की ने आरोप लगा दिया तो…’